
गुरुकुल कुरुक्षेत्र की स्थापना अमर हुतात्मा स्वामी श्रध्दानंद जी ने १३ अप्रैल १९१२ को वैशाखी के दिन की थी | थानेसर शहर के रईश दानवीर लाला ज्योति प्रसाद जी ने गुरुकुल की स्थापना के लिए १०४८ बीघा जमीन व १००००/- चांदी के सिक्के दान स्वरूप दिए व जब तक जिए दानवारी से गुरुकुल को सींचते रहे | वर्तमान में गुरुकुल के प्राचार्य आचार्य डॉ. देवव्रत जी हैं.
सोमवार, 18 फ़रवरी 2013
गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013
दृढ़ दयानन्द
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दृढ़ दयानन्द |
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ब्रह्मचारी प्रशान्त द्वारा लिखित कविता |
दृढ़ दयानन्द
दयानन्द वीर था ऐसा,
मिलेगा जग में न तेरे जैसा।
शिवरात्रि वाली रात को जग याद करेगा।
जग याद करेगा।।
गुरुवर ने तुझे मारा, कोई न था तेरा सहारा।
बहन की मृत्यु पर, न तू था रोया,
चाचा की बारी पर भी न विस्मित सा होया।
वो बैलों वाली गाथा पूरा विश्व पढ़ेगा।
पूरा विश्व पढेगा।।
पाखण्डियों से लड़ा तू, धर्म-धुरन्धरों से भिड़ा तू।
क्या तेरी शक्ति थी, वो तो ईश्वर की भक्ति थी।
कफन से उठाया कपड़ा, वो मातृशक्ति ही थी।
उन वेदों वाले मन्त्रों को बच्चा-बच्चा पढ़ेगा।
बच्चा-बच्चा पढे़गा।।
पत्थरों से तुझे मारा, कटु-वचनों से न हारा।
राजा को तूने खरी सुनाई, तब नन्हींजान ने कसम खाई।
जहर भी तुझे खिलाया, कांच पीस दूध में पिलाया।
जगन्नाथ की वो गद्दारी, जग हमेशा दुत्कारेगा।
जग हमेशा दुत्कारेगा।।
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