गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

दृढ़ दयानन्द

दृढ़ दयानन्द




ब्रह्मचारी प्रशान्त द्वारा लिखित कविता 

दृढ़ दयानन्द











दयानन्द वीर था ऐसा,
मिलेगा जग में न तेरे जैसा।
शिवरात्रि वाली रात को जग याद करेगा।
जग याद करेगा।।

गुरुवर ने तुझे मारा, कोई न था तेरा सहारा।
बहन की मृत्यु पर, न तू था रोया,
चाचा की बारी पर भी न विस्मित सा होया।
वो बैलों वाली गाथा पूरा विश्व पढ़ेगा।
पूरा विश्व पढेगा।।

पाखण्डियों से लड़ा तू, धर्म-धुरन्धरों से भिड़ा तू।
क्या तेरी शक्ति थी, वो तो ईश्वर की भक्ति थी।
कफन से उठाया कपड़ा, वो मातृशक्ति ही थी।
उन वेदों वाले मन्त्रों को बच्चा-बच्चा पढ़ेगा।
बच्चा-बच्चा पढे़गा।।

पत्थरों से तुझे मारा, कटु-वचनों से न हारा।
राजा को तूने खरी सुनाई, तब नन्हींजान ने कसम खाई।
जहर भी तुझे खिलाया, कांच पीस दूध में पिलाया।
जगन्नाथ की वो गद्दारी, जग हमेशा दुत्कारेगा।

जग हमेशा दुत्कारेगा।।