शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

हाय रे पागल इंसान !

 ब्रह्मचारी शुभम आर्य


रचना ब्रह्मचारी शुभम आर्य कक्षा सप्तमी
गाँव-बरिछारियारी जिला-नालंदा (बिहार)










हाय रे पागल इंसान !

र्इश्वर ने दिये हमें,
कर्इ अनमोल वरदान।
धरती दी जल दिया,
वृक्षों की छाया की प्रदान।
अपनी वासनाओ की पूर्ति के कारण,
हमने पहुँचाया इनको नुकसान।
हाय रे पागल इंसान !

वृक्ष हमारे लिए वरदान,
कुदरत की ये भेंट महान।
चले पवन यह महक बिखेरे,
कुछ देने से मुँह नहीं फेरे।
मानव ने की इसकी भी कटार्इ,
इंसान बन गया कसार्इ।

धरती की तो महिमा निराली,
यह मानव की उत्तम खुशहाली।
माता इसको जग कहे,
पर प्रदूषण फैलाने में पीछे न रहे।

जल जीवन का आधार,
नष्ट करे इसे निराधार।
हर मोड़ पर इसको काम में लाया,
पर प्रदूषण का दाग लगाया।

अगर चाहते हो खुश रहना,
मानो 'शुभम का कहना।
मत दो प्रकृति को प्रदूषण नाम की गाली,
वरना यह छीन लेगी तुम्हारी खुशहाली।।