आचार्य आशीष जी आर्य तपोवन आश्रम देहरादून नालापानी |
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गुरुकुल कुरुक्षेत्र २९-०४-२०१४
०१. जिस भी अच्छे काम को करने में डर लगे उस काम को जानबूझकर बार-बार करना चाहिए।
०२. यदि डर निकल गया तो आप बहुत आगे निकल जायेंगे।
०३. यदि डर लग रहा है तो उसे स्वीकार करो, उससे लड़ाई मत करो।
०४. वर्तमान में रहकर वर्तमान को स्वीकार करना सीखो। इससे आप बहुत से दु:खों से बचना सीख जायेंगे।
०५. ल6बे-गहरे श्वास लो अनुभूति के साथ। इस क्रिया को तीन-चार बार करो इससे आप अपने आपको शान्त रख पायेंगे।
०६. गहरी श्वास लेकर नासिका के अन्दर जा रही श्वास को अनुभव करो, इसी प्रकार बाहर जा रही श्वास को भी अनुभव करो।
०७. जिन्दगी में एक आदत बनाओ जिस 5ाी अच्छे काम को सुनो जानो उसे जल्दी से प्रयोग में कर लेना चाहिए।
०८. यदि नाक के अन्दर श्वास को अनुभव करना सीख जायेंगे तो आप जल्दी ही एकाग्र होना सीख जायेंगे।
०९. कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो आन्तरिक रूप से दु:खी होते रहते हैं तो इसका जि6मेवार कौन है ? स्वयं ही।
१०. बिना कार्य कारण के कोई कार्य नहीं होता। जो भी जड़ पदार्थ है वे बिना कर्ता के कोई आकार नहीं ले सकती। जैसे बीज में अपनी कोई क्षमता नहीं है। लेकिन जब चेतन त8व इसको प्रयोग करता है तो उसको बोता है तो आगे जो चेतन त8व ईश्वर है वही उसे निर्माण करता है। मिट्टी का ढेला जिस प्रकार से स्वयं नहीं बनता उसी प्रकार से कोई भी त8व अपने आप नहीं बनता। इसके लिए किसी निर्माता की आवश्यकता होगी। वह निर्माता सर्वव्यापक एवं चेतन होना चाहिए। वह एनर्जी होनी चाहिए वह एनर्जी ही परमेश्वर है।
११. किसी भी काम एकदम निर्णय मत करो अपने बुद्धि के द्वार खुले रखो। विचार करते रहने से हम सत्य तक पहुँच जाते हैं।
१२. दो प्रकार का विज्ञान है एक भौतिक एवं दूसरा अध्यात्मिक।
१३. जिस प्रकार से हम भौतिक विज्ञान के ज्ञाताओं के बनाये हुए कार्य को देखकर उसकी प्रश्ंासा करते हैं। उसी प्रकार ब्रह्माण्ड की रचना के बारे भी सोचना चाहिए। न तो विज्ञान ईश्वर विरोधी है और न ही अध्यात्म विज्ञान विरोधी है।
१४. जिस प्रकार से कोई वैज्ञानिक आविष्कार करता है वह दूसरों की सहायता के लिए होता है। उसी प्रकार ईश्वर जो संसार की रचना करता है वह जीवात्माओं के लिए होता है।
१५. ईश्वर जीव और प्रकृति नित्य हैं।
१६. जिनको चश्मा लगा हुआ है और जिनको लगने की संभावना है उनके लिए एक प्रयोग करके देखें प्रात: उठकर मुँह में पानी भरकर पानी के २५-३० बार आँखों में छींटें मारें और पानी को बाहर निकाल दें इस प्रकार दो-तीन बार करें। इस क्रिया को दिन में दो या तीन बार दोहराने से कभी भी आँखों पर चश्मा नहीं लगेगा।